Incomplete Expressions
I will write these thoughts and reflections in two languages that's where I got this subject to write on
First I will write in Hindi from where I started opening a knot in my heart that was hardened in the last 12 years.
अधूरा प्रगटावा
एक तो भारत के लोग खुल कर बात नहीं करते जब gender अलग अलग हो। अगर दो इनसान अच्छे दोसत बन सकते हैं तो वह आपस में बैठ कर बात कयों नहीं करते। जरूरी तो नहीं हर रिश्ते में शरीरक संबंध ही हों , जा फिर अगर हों भी तो क्या शुरू शरीरक संबंध से ही कयों हो। पहले कुछ समय एक दुसरे के बारे में जानो। कुछ समय साथ साथ बताओ। हो सकता है समय साथ बिताने के बाद आपको लगे के बहुत अच्छी बनेगी जा फिर यह पता चले नहीं यह दोसती जयादा देर नहीं चलने वाली। अफ़सोस तो तब होता है जब पता भी हो रिश्ता गहरा है, पर है unexpressed .
जा फिर express तो कीया पर अधूरा। यह बोल दीए आप मुझे बहुत अच्छे लगते हैं ,जा मैं आपसे प्यार करता हूँ जा करती हूँ पर मिलने की अच्छा ज़ाहिर नहीं की। अगर की भी तो कभी एक साथ पूरी जानकारी दे ही नहीं पाए। कभी समय बता दीया ,जगह नहीं बताई। कभी समय और जगह बताई परन्तु तारीख़ नहीं बताई। दोनों लोग अलग अलग समय जा अलग अलग जगह एक दूसरे का इंतज़ार करते रहे और विछड़ गए। बिना जाने कि दूसरा इनसान कहना क्या चाहता है ,वह लोग विछड़ जाते हैं । जा फिर किसी workplace पर मिले जहाँ दुसरे इनसान ने सोच लीया जहाँ कुछ बोल दीए इसकी नौकरी ही न चली जाए बगेरा बगेरा बगेरा। वैसे भी आधी से जयादा हिंदी फिल्मे इसी विषय पर तो बनती हैं ,जिसमे फिल्म के शुरू होने से अंत तक दो लोग दूसरी तरफ देखते देखते ढूढ़ते ढूढ़ते पास से निकलते रहते हैं ,मिलते कभी नहीं । पूरी फिलम एक दूसरे का इंतजार करते रहते हैं। कभी एक निकला दूसरा ठीक 2 मिनट बाद उसको ढूढ़ता हुआ आ गया। अब उसे पता ही नहीं अभी 2 मिनट पहले उसको ढूढ़ते ढूढ़ते दूसरा इंनसान जा भी चूका है। फिर आते हैं फिल्म में मिलाने की कोशिश करने वाले। उनकी कोशिश बने बनाये काम को खराब करती रहती हैं। उनकी indirect बातों का गलत अर्थ निकाल एक पूरब में जाएगा तो दूसरा पश्चिम में चला जाएगा। क्या है यह ड्रामा हिन्दी फिल्मों में भी ,नाटक में भी और ज़िंदगी मेँ भी।
भले लोगों पूरी उम्र पछताने से अच्छा है एक ख़त लिख के दुसरे को दे दो कि फलाने दिन , फलानी जगह ,इतने वजे मिलते हैं। इतने आसान काम को पूरी उम्र बर्बाद। क्या करेगी तुम्हारी phone apps , तुम्हारी कविताएं और कहानीयाँ। काम आएंगी क्या practical life में ?? नहीं ना ? क्यों हर बात को अधूरा और complicated बनाने में लगे हैं लोग। सिर्फ इस लीए के apps के मालिक और public media enjoy कर सके 10 -20 साल के इस लड़ीवार को
Please allow me start from my limitations. I believe my knowledge of English language is an average. I can still effectively talk to co-operative listener. It is more effective when I communicate through written content and get back written response. The second thing I know less about other cultures because I got very few chances to involve in Multicultural Canada. I have limited interactions ta workplace where work pressure of production is main highlight. I still have worked along well with people from different cultures.
When it comes to expression I have always heard English people are more open and gender is not a big deal. In practical life I have not witness that. To my experience females still avoid talking to males from other communities. I can not openly express what I want to express. Perhaps this has been engraved in my brain because of political gender division. For example I can not even share jokes with females with a thought what if it got twisted and became political gender issue to target me.
Here I just want to express that politics has made social structure dysfunctional and distorted.
If I love someone I may not express just because of political gender division. That is all I want to say.