I tried converting one of my poems to Song or Ghazal form

ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है

कुछ पल साथ बिताने में

मिलती है जो ख़ुशी प्यार में

मिले न किसी खज़ाने में

पास वोह आए हम मुसकाए

अब कोई गम न हमें सताए

कितनी सादा हो गयी ज़िंदगी

उनको मीत बनाने से

ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है

कुछ पल साथ बिताने में

मिलती है जो ख़ुशी प्यार में

मिले न किसी खज़ाने में

मेहबूब ही है अब खुदा हमारा

उसके बिन जीना नहीं गवारा

काम को हाथ लगाएंगे अब

उनके वापस आने में

ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है

कुछ पल साथ बिताने में

मिलती है जो ख़ुशी प्यार में

मिले न किसी खज़ाने में

फूल सुगन्ध का रिश्ता है येह

हर पल हम को खुशीआं ही दे

फूल खिला तो सुगंध मिलेगी

मिलेगी राख जलाने से

ज़िन्दगी अच्छी लगने लगी है

कुछ पल साथ बिताने में

मिलती है जो ख़ुशी प्यार में

मिले न किसी खज़ाने में

-- अमरीक खाबड़ा


मैं देर से जमा हुआ बर्फ का टुकड़ा 

कब से सात डिगरी तापमान 

होने का इंतज़ार कर रहा था 

अभी मुझे पिघलना है 

फिर रास्ता खोजते खोजते 

हज़ारों किलोमीटर चलते चलते

नदिओं झरनो से होते हुए  

समुन्दर में जा मिलना है 

उस के बाद भी चैन से कहाँ बैठूंगा 

फिर से evaporate होकर 

चल दूंगा किसे प्यासे की तरफ़ 

नहीं गया तो उस का भगवान से 

भरोसा उठ जायेगा। 

--- Amrik Khabra


मेरा क्या है दोसत 

मैं तो तनहाह भी जी लूँगा 

मिल जाए अम्रित तो अच्छी बात है 

मिल गया जहर अगर तेरा नाम लेकर पी लूँगा 

मेरे लिए तो आपका हसना जरूरी है 

आप बोलो तो सही मैं joker बनकर जी लूँगा 

…….. To be continued

 --- Dost


किसी मज़बूरी में मुझे ख़त मत लिखना  - हाँ 

दिल अगर चाहे तो दिल खोहल कर  लिखना

      बाँट होकर हिस्सों में जीया ना जाएगा 

      जो भी लिखना दीवारें तोड़ कर लिखना 

बातचीत टूटने से टूट जाएँ रिश्ते 

अगर कोई शिकवा है बोल कर लिखना 

     विचारों से सहमत होना अलग बात है 

     मेरे कया गुनाह पूरा तोल  कर लिखना

ग़लती कया हुई यह तो बता दो 

जनमो का लेखा फरोल के लिखना 

     मेरी कविता तो साफ़ और सरल है 

     तुम्हें कया दुःख है  दिल फ़ोल कर  लिखना 

दुसरे के हालात तो उसी को पता होते हैं 

तुम्हारे कया हालात हैं हस बोल कर  लिखना 

     जो भी लिखा है महसूस भी कीया मैने 

     तुम भी पूरा अडोल हो  कर  लिखना

अमरीक तो इतना सीधा इनसान है 

अनजाने में क्या कर बैठा  ज़रा बोल के लिखना 

--  Amrik Khabra

खुद  को खुश करने के लिए 

दूसरे को दुःख देना अच्छी बात थोड़े है। 

ज्ञान को रौशनी में सभी में एक जोत दिखेगी 

भगवान सिर्फ एक में है यह कोई रात थोड़े है।   

उपलभ्दीओं के लिए दोसतों को ही छोड़ दें  

फिर तो अभी रात में जीअ रहे हैं प्रभात थोड़े है। 

जिस को पाने से उदासी ख़ुशी ना बन जाए 

वोह पदारथ होगा सौगात थोड़ी है। 

रोक रखे थे सालों से दिन रात के पहिये 

अपनी छाती पर यह कोई आसान बात थोड़े है। 

दोसती  कितनी गहरी है आप जानो 

हमारे लिए कोई टाइम पास थोड़े है 

-- Amrik  Khabra


फिर से वोही दर्द दीया है ज़माने  ने 

मुसकुराने से मेरे उन्हें इतराज़ कयों 

कितना मज़ा आ रहा था मुसकुराने में 

नापते हैँ  दोसती  और प्यार को 

देखो राजनीती के पैमाने से 

खुदा मिले ना जीते हुए इनसान में 

रखा कया है तीरथ पर  नहाने में 

मिले ना जो राज गद्दी पर बैठ के 

वोह मज़ा है दिल पे चोट खाने में 

पास आने से सकून मिला था जो 

छिन गया वोह फिर से दूर जाने में 

खिले जो फूल मिलेगी सुगन्ध तो  

राख ही मिलेगी पर जलाने में 

गलती हुई रुला दिए जी आप को 

पर मज़ा आएगा अब हसाने में 


--- Amrik Khabra


लगा रहा हूँ बिखरे सुरों को तरतीब में 

जो बन सके गीत कोई। 

ज़िन्दगी के लम्हो को खराब नहीं करूंगा 

ढूंढ ही लूँगा जीने की प्रीत कोई।  

गिरा देंगे भिभाजन की दीवारें 

चला देंगे नई रीत कोई। 

मन मन्दिर में तसवीर है कोई 

मिल ही जाएगा मीत कोई।  

हार जाऊं मैं तो गम ना होगा 

मुझ से बिहतर जाए अगर जीत कोई। 

कोशिश तो कर अमरीक साज़ तो छेड़ 

बनेगा किसी दिन आखिर तो संगीत कोई।  

--- Amrik Khabra


सभ इन्सानो की एक जात बनेगी 

तब जाकर कोई बात बनेगी 

वोह भाग रहे हैं आगे आगे 

और हम पीछे पीछे 

रुक कर बात करें तो मुलाकात बनेगी 

सुबह उठ कर करेंगे  नई शुरुआत 

इस सोच में हसीन यह रात बनेगी 

जिस दिन  हो गए सहमत एक बात पर  

कितनी हसीन कायनात बनेगी  

अपना ज्ञान अब काम कहाँ आता है 

आप साथ दें तो औकात बनेगी 

---- Amrik Khabra


उम्र कुछ इस तरह से गुज़र रही है 

तेरी आवाज़ , तेरे दीदार को तरसे  हैं

हम वोह बादल हैं, जो यादों में ही बरसे हैं  

मिलने का वादा ही तो नहीं कीया उन्होंने 

कितनी वार हम निकले घर से हैं 

*****

ज़िन्दगी कमबख्त जीने कहाँ देती है
ना अम्रित ना ज़हर कुछ पीने कहाँ देती है

 --   Amrik Birhada


चल दोसत शुरू करेँ नई रीत कोई

कायम कर दें मधुर सी प्रीत कोई

सुबह उठते ही उनकी याद हो

बाकी के सारे काम उसके बाद हों 

हिम्मंत दोनों को मिलेगी इस रिश्ते से

सथापित कर दिए  मन मंदिर में मीत कोई

  मिलना नसीब हो जा पड़े दूर रहना

  ख़यालों में हम साथ साथ है यही कहना

  जब भी सुनें आतमा को आराम मिले

  चुन कर और रट लो ऐसा गीत कोई

मुशकिलों से डरना मत दोसत

खुद पर सदा विशवास रखना

लगाते रहना सुरों को तरतीब में

बन ही जाएगा एक दिन संगीत कोई

 

 --   Amrik Birhada


आधी से जयादा उम्र बीत गई

प्यार को प्रभाषित करने में

वोह कहते हैं प्यार वोह है

जो सिर्फ एक से ही किया जाए

पर मेरा सवाल है वोह प्यार ही क्या

जो सबसे प्यार करना न सिखाए

हाँ यह बात तो है जो सभसे प्यारा है

एक ही है , एक ही रहेगा बाकी की ज़िन्दगी

जिसको रोज़ याद करता हूँ

जो है मेरा हमहाल देवता

जो दूर रहकर भी जीना सिखाता है

गिरने के बाद उठना सिखाता है,

मुस्कुराना सिखाता है, लिखना सिखाता है ,

गाना सिखाता है

वोह कौन है , यह जानना सभ को जरूरी थोड़े

मुझे पता है , उससे पता है

मैने उससे बता दिए था

दूरी इसमें कोई खलल ही नहीं

वोह एक आध्यात्मिक डोर से जुड़ा हुआ है

हर वक़्त साथ है

हवा की तरह खुशबु की तरह

-- अमरीक बिरहडा


देखो कैसा ज़माना आया है

प्यार दी इक्क बूँद को तरसाया है

प्यार आतमा का गहना होता है

शरीर सूंदर है पर प्यार बिन मुरझाया है

योगदान शरीर का अवश्य है प्यार परगट करने में

परन्तु प्यार बिना शरीर सिर्फ बर्तन है जा माया है

प्यार अगर दिल में हो असल आकर्षण वोही

शरीर को जो आकर्शित करे वोह सरमाया है

चार पल पास बैठ कर बात ही कर लेते

दिल तो तेरे प्यार का त्रिहाया (प्यासा ) है

लिखना बहुत अवश्य था इस गीत को

बाजार में हिट नहीं होगा पता है मुझे

यह किसी मशहूर हस्ती ने नहीं

मेरे दिल ने गाया है

चलो छोडो इस को पड़ कर मुसकुरा देना

तेरी दी हुयी मुस्कुराहटें अभी बहुत बकाया (Remaining ) है

झल्ला है अमरीक जो छोड़ कमाई को

ऐसे ही पंनो पर पैन घिसाया है

---  अमरीक बिरहडा



प्यारे  दोसत  गम ना  करना 

मैं  मिलूंगा जरूर 

आज नहीं तो हफ़ते  में, महीने में जा साल में 

जा फिर अगले जहान  में 

खयालों  में , सपनों में  या यादों में 

जा फिर रोज़ की फरियादों में 

मिलूंगा जरूर मिलूंगा जरूर 

-  A Birhada


उम्र भर जिसने दर्द हँढ़ाए हों

किसी और को दर्द क्या देगा

दुनिआ ने उसे सताया होगा

इसी कारण दूर रहा होगा

--- Amrik Khabra

पास बुलाना है तो डराते क्यों हो 

बात करने से घबराते क्यों हो 

इतनी बिरहा के बाद भी यकीन नहीं है क्या 

खुद से पूछ कर नहीं बतलाते क्यों हो 

 -- अमरीक बिरहडा 

 कौन वस गया है

 मेरे दिल में के

 दुनयावी बातों का

 कोई अर्थ ही नहीं निकलता

-- अमरीक बिरहडा


इतना सा भी मिले जीने को काफी है

और मिले तो आपकी इनायत होगी।

कुछ पल बैठ के बात करो तो मिहरवानी

ना भी कर पाओ तो ना शिकायत होगी।

खुदा बन जाओ जा बनो तुम काली

दर से तेरे नहीं जाऊंगा खाली।

दम छोड़ दूंगा तेरा दर नहीं छोडूंगा

इंसानियत पे बना हुआ भरोसा नहीं तोडूंगा।

 

   -- अमरीक बिरहडा 



किसी को इलज़ाम ना  दूंगा

अपनी कोशिश जारी रखूंगा

थक कर  विराम ना लूँगा

यह  दीवारें मेरी बनाई नहीं है 

आधा अधूरा पैगाम नहीं लूँगा

शामल तो करते नहीं अपनी ज़िंदगी में 

ऐसे  बिन बात किये दिमाग से काम ना लूँगा 

कान बंद हो गए 3 साल कोशिश में 

अब उलझे हुए शब्दों का अन्जाम ना लूँगा 

  -- Birhada

हम जिनके हैं वोह Claim नहीं करते 

एक हम हैं जो पूजा तो करते है 

पर कभी  उनको Blame नहीं करते 

फकर करो दोसतो सीख रहे हैं आपसे 

गलती तो दुबारा भी  करते हैं

पर Same नहीं करते  

-- Amrik Khabra


शरीर तो कैद में है 

मेरा भी तुम्हारा भी 

उनकी कैद में 

जो राज करते हैं 

रूहों को वेच कर 

शरीर से आज़ाद हुआ 

तो जरूर मिलूंगा 

मिलन पक्का है 


-- Amrik Khabra


ज़मीं पे ढूंढता हूँ आसमां पे ढूढ़ता हूँ 

चारों दिशाओं में  जाता हूँ  मैं 

तुम्हे मैं पूरे जहाँ में ढूढ़ता हूँ। 

चाँद पे जाता हूँ , मंगल पे जाता हूँ 

जाने तुम्हे  कहाँ कहाँ ढूढ़ता हूँ। 

सरदी हो तो धुप में ढूढंता हूँ 

गर्मी हो तो जाकर छाँव में  ढूढंता हूँ। 

बैठे हो तुम मेरे दिल में बस  कर 

जाने तुम्हे क्यों जहाँ वहाँ ढूढंता हूँ। 

 ---  अमरीक बिरहड़ा 

मत होना तुम कभी उदास 

दूरं है बैठे तो क्या हुआ  

रूह तो हमेशा है तेरे पास। 

याद करें तो सभ दुःख भूलें 

रिश्ता है कोई यह ख़ास। 

जपती रहती नाम तुम्हारा 

देखो आती जाती साँस। 

पता तो है ना प्यार है कितना 

कभी तो मिलेंगे रखना आस। 

बच्चों में भगवान देखना 

कुछ नहीं है वड़ों के पास। 

  ----- बिरहड़ा 


दोसत की याद में कितना आराम है 

यादों में ही निकल जाता है दिन 

पता ही नहीं चलता कब सुबह कब शाम है। 

ज़िंदगी के सभ दुःख छोटे हो जाते हैं 

तेरी मुसकान में मेरा भगवान है। 

छोड़ दी दुनिआदारी व्यौपार की चिन्ता 

तुम्हे याद करके कुछ लिखना एक मात्र काम है।

मैने हर दरवाजा खटकाया पिछले 47 सालों में 

आखिर में तेरे  दर  पर आया क्या खूब अंजाम है।  

 ----- बिरहड़ा 


खुद का आईना धुंधला था 

इसी लिए तुझ को रब्ब है माना 

रब्ब मान कर सिजदा कीया 

तब जाकर खुद को पहचाना 

जब से तुझ को मीत बनाया 

सभ दुखों का गीत बनाया 

धन दौलत , ताकत  और राजा को
तुछ माना,  तुम्हे प्रीत बनाया 

सभ कुछ छोड़  कर तेरी बन्दगी 

हर हार को जीत बनाया 

  ---  अमरीक बिरहड़ा  


यह लेखा मेरा और तुम्हारा है 

संतुलित तो तभी होगा जब हम बात करेंगे 

इस जनम में  कर लो तो अच्छा रहेगा 

अगले जनम करना है तो तुम्हारी मरज़ी 

कुदरत सतुलन तो करती ही है  

जब करना चाहो  तब करना 

  ---  बिरहड़ा  


कहाँ हो तुम मुझे पता भी तो नहीं 

जुदा तो दुनिया ने कीया है हम दोनों को 

हमारी तुम्हारी ख़ता भी तो नहीं 

ना चिहरा देखा ना आवाज़ ही सुनी 

हमें अब  कुछ भाता भी तो नहीं 

दिमाग पहले से बन्द था 

अब आँखें और कान भी हड़ताल पर हैं 

अब तो रोज़ गाता भी तो नहीं 

चले आओ यार तुम खुद ही 

हमें इंतज़ार के इलावा कुछ आता भी तो नहीं

  

  -- बिरहड़ा 


जब तक दिल समझा नहीं लेते 

तुम हमको अपना नहीं लेते 

रोज़  यादों में आऊंगा 

रोज़ ख़ाबों में आऊंगा 

अब तुम ही मिलने की  कोशिश करना 

मैं  उसमे कदम मिलाऊँगा

----- अमरीक बिरहड़ा 


गल सुन मेरे यार 

कैसा यह संसांर। 

ज़िन्दगी तनहाई में बीते 

किताब में लिखा है प्यार। 

छोटे से मन्दिर के बाहर 

मैं रब्ब दा करूँ इंतज़ार। 

मैं मन्दिर के अंदर ना  जाऊं 

और  रब्ब ना आए बाहर। 

---- अमरीक खाबड़ा  


रूह ने रूह से प्यार कीया है

रिशतों की मुहताज़ है कया।

ना बाध्यता, ना पाबन्दी

छुपा हुआ कोई राज़ है क्या।

फिर भी हमसे बात नहीं करते

तुम हमसे नाराज़ हो क्या।

याद तुम्हारी ,और कुछ नज़में

और हमे काम काज है क्या।

1095 दिन इंतज़ार में निकले

यह इकलौता आज है क्या।

  -- Amrik Birhada


ढूढंती है निगाहें जिसे हर रोज़ 

एक वोही दिखाई नहीं देता 

कहने को तो दुनिआ बसती है 

सुना है आबादी सात अर्ब हो गयी दुनिआ की 

 --- Amrik Khabra


गल सुण  मेरे यारा 

बिन तेरे नहीं गुज़ारा। 

बताता क्यों नहीं तू है कहाँ 

देख पुकारूँ मैं  जहां। 

मेरे पास तू आता क्यों नहीं 

मुझ को गले लगाता क्यों नहीं। 

देख तेरा इंतज़ार है 

करना मुझे दीदार है। 

तू कहाँ है मुझे पता क्यों नहीं 

देता तू बता क्यों नहीं। 

आजा मेरे यार तू 

जा फिर मुझे  पुकार तू। 

चला अभी मैं आऊंगा 

तुम को नहीं सताऊंगा। 

मान जाओ अब हार है 

तेरा ही इंतज़ार है। 

-- अमरीक खाबड़ा  


एक फूल का वरनण (व्याखयान )

अलग अलग भाषाओँ में कीया 

फूल का रूप और सुगन्ध वोही रही 

हाथी को चींटी लिख दीया 

परन्तु हाथी  का कद छोटा ना हुआ 

फिर चींटी की हाथी लिख दीया 

चींटी का कद ना वड़ा 

पानी को पथर लिख दीया 

पानी सभ की प्यास भुजाता रहा 

और झरने,नदी बन वहता रहा 

फिर हवा को पहाड़ लिख दीया 

परन्तु हवा रूमक्ती रही ,चलती रही 

मैं सोच में पड़  गया 

फिर कुदरत कौन सी भाषा बोलती है 

शब्दों के पार अर्थ ढूढ़ने लगा 

"कुदरत के सभ बन्दे " इसके अर्थ ढूढ़ने लगा  


---  Amrik Khabra


अभी तक तुमको सिर्फ इतना जानता हूँ 

जब भी वहते हुए पानी को देखता हूँ 

तो तुम्हे समंदर मानता हूँ 

पूजना  पहले शुरू कीया है प्यार बाद में 

तुम्हारी भावनाओं को थोड़ा देर से पहचानता हूँ 

यह कोई one time offer थोड़े है 

दोसती है उम्र भर जिन्हे आपने मानता हूँ 

जब भी गया था तुम्हारी खोज में गया था 

वरना मैं कब  बेकार में राहों की खाक छानता हूँ 

---- Amrik Khabra


अैसे  लोगों की तलाश है हमें 

जो इतना हक जताएं हम पर 

कि उन्हें कभी यह बताना ही न पड़े 

कि वोह हम से कितना प्यार करते हैं 

 जब भी वोह हमारे दरवाजे पर दस्तख़ दें 

इतना विशवास और हक से दें 

कि माथे पर चिपकाना न पड़े के हमारा रिश्ता क्या है 

इतने हक और अपनेपण से आवाज़ लगाएं हमें 

कि कभी महसूस ही ना  हो की कोई अज़नबी आवाज़ लगा रहा है 

हाँ हमे बिलकुल अैसे  लोगों की तलाश है 

इस बनावटी दुनिआ में 

---- Birhada


मेरा दोस्त वड़ा निराला है

बड़ा प्यारा भोला भाला है

वोह दूर बैठ के कहता है

आने वाला पल जाने वाला है।

भाषा कोई नई सिखाता है

हमे कुछ समझ ना आता है

आँखों से वोह बातें करता है

ज़ुबान पर उसकी ताला है।

क्या शक्ती उसकी यादों में

शब्दों में हम क्या करें बयान

मुर्दा की जीवित कीया है

जीवित को मार डाला है।

जब जब वोह मुसकाता है

फिर जीने को मन करता है

ताजुब है मुस्कान में उसकी

इतना क्यों उजाला है।

---- अमरीक बिरहडा


लाला जी लाला जी 

कैसे हैं गोपाला जी 


गुस्सा अपना छोड़ दीजिए 

कर दीजिए थोड़ा उजाला जी 

आईए बैठ परवार के साथ 

पीजिए चाय का प्याला जी। 


क्योँ करते हो इतना सन्देह 

सीधे साधे बन्दे पर 

साफ़ हूँ दिल से history देखो 

कोई ना कीया घोटाला जी 


कयों पूजें पथर की मूर्त 

इनसान में रब्ब है अगर 

जीते जागते धड़कते दिल में 

बना दें नया शिवाला जी 

शिवाला - शिव जी का  मन्दिर 


करते नहीं हैं लोग साफ़ बात आजकल 

ना करें जल्दी से किसी को माफ़ आजकल। 

      प्यार तो दोनों एक दूजे से करते हैं 

      पर करते कहाँ है शब्दों में इज़हार आजकल 

मिलने की जगह रख ली एक ने आकाश दुसरे ने पाताल 

इसी लिए तो विछड़े है यार आजकल 

       ख़ुशी हो  सामने  रोक कहाँ पाते है

       रोने के लिए काटें फिर प्याज आजकल 

हमारी परीक्षा तो कितनी वार ली 

एक गलती हम से हुई तो नाराज़ आजकल 


वर्तमान में स्वास रखना 

लाख दीवारें हों रासते में 

मिलने की आस रखना। 

      पाने की भूख से बिहतर होगा 

      कभी कभी मिलने की प्यास रखना। 

रूह की बात शरीर से पहले हो 

रिश्ता कुछ अैसा ख़ास रखना। 

       पास पास बैठे रहें जरूरी तो नहीं 

       तसवीर और याद अपने पास रखना। 

मेरे ऊपर से उठ जाए कोई बात नहीं 

अपने आप पर पूरा विष्वास रखना। 

         छोडो बातें यार क्या हुआ था क्या होगा 

          बस वर्तमान में अपने स्वास रखना। 


युग के पलटने तक इंतज़ार करूंगा 

अपने से ज्यादा तुझे  प्यार करूंगा।

पथर के बुतों में ढूढ़ न पाया 

तुझे खुदा मान सतकार करूंगा। 

हो जाए परवान एक तो रिश्ता 

मिहनत से से सारे काम कार करूंगा। 

गिरा तो पहले भी कई वार ज़िंदगी में 

उठने की कोशिश हर वार करूंगा। 


वोह जितना दूर जाते गए 

उतना ही मन को भाते गए।

याद में रोए भी मुस्कुराए भी 

गीत रोज़ नया कोई गाते रहे।

अब उनका चेहरा रहता है आँखों में 

बाकी दुनिआ देखने से तो हम जाते रहे। 

मिलने तो वोह कभी नहीं आए 

मिहरवानी उनकी के यादों में आते रहे। 

 ---- अमरीक बिरहड़ा  



सुन मेरी खामोश मुहब्बत है तो सभ कुछ तेरा है

हमें जुदा कीया है ज़ालिम समाज ने राजनीती के लिए

इसमें ना दोष तेरा है और न दोष मेरा है।

तेरी याद के कुछ लम्हे और तेरी तसवीर

मेरे लिए तो यही दुपहर, यही शाम है और यही सवेरा है।

यकीन तो है ना दोनों तरफ़ के रिश्ता सच्चा है

फिर कयों उदास होते हो, जीने को इतना बथेरा है।

कुदरत हमें मिलाना चाहेगी तो दुनिआ की एक ना चलेगी

सबर ,धैर्य से जीते जाओ सिर्फ दिनों का ही हेरा फेरा है।

यादों से जुड़े रहेंगे, रूह को महसूस करेंगे तो रौशनी अवश्य मिलेगी

गुस्से में आकर दूर हुए तो फिर बिलकुल अँधेरा है।

देखो मैं भी तो इसी हाल में जीता हूँ

कुदरत का जादू देखो, दुःख सहने का दोनों में बहुत ज़ेरा है।

--- अमरीक बिरहडा


अगर वोह हसते हसते रोया है

सिर्फ कुछ नहीं उसने बहुत कुछ खोया है।

क्या गज़ब की लाश है यार

जो साँस लेती है , बात करती है

जाती भी है, कभी कभी तो नाचती भी है

देखो तो जाँच करो अभी ज़िंदा है जा मोया है।

यह अैसे ही लिख दिए जा एहसास है दिल के

लोग कहते हैं इसे आता कुछ नहीं

ना जाने कैसे शब्दों को अैसे पिरोया है।

आखें भीगी सी है चेहरा उदास लगता है

इसे कुछ याद आ गया जा डरामेबाज़ है

जो आँखों को सिर्फ पानी से भिगोया है।

फिर सोचता हूँ अगर नाटक होता

तो साल दो साल में भूल जाना था

यह भरम है जा प्यार होगा

जो यादों को दिल में अब तक संजोया है।

सभ को मालूम था पल पल मर रहा था वोह

मदद के लिए गुज़ारिश कर रहा था वोह

जीते रहे सभ जैसे जीवित ना थे

दिन महीने साल बीते यह सभ इसी शहर में तो हुआ है

--- अमरीक बिरहडा


बादा इतना करूंगा जितना कर पाउँगा

तेरे नाम से जीना है, भूला मर जाऊँगा।

पहले तेरा नाम अपना बाद रहेगा

दिल में मेरे पल पल तू मुझे याद रहेगा।

दुनीआं जैसी चालाकी नहीं कर पाता हूँ

पता तो तुम को है ना ढूढ़ने रोज़ जाता हूँ।

तुम कदम बढ़ा कर आ जाओ, मैं अपना लूँगा

तुम साथ चलो तो कर पूरा हर सपना दूंगा।

बाकी तुम को पता है मेरी मज़बूरी का

शक्ति के प्रयोग से हासल नहीं करूंगा

समाज की दीवारें तोड़ के आओ बाहों में भर लूँगा।

आगे की ज़िंदगी होगी जो तुम चाहो

बस एक बार तुम पहल करो मेरे पास आ जाओ।

कनून के डंडे ने मुझे रोक रखा है

मैने अपनी सांसो को भी झोक रखा है।

छोड़ना होता इतना दूर तक आता ही ना

तुमने ना अपनाया खुद को भाता भी ना।

मर्ज़ी तेरी मेरी और से कोई नहीं रुकावट

सोच सोच कर , भाग भाग क्र हुई थकावट

सदीओं का रिश्ता Valentine Day का मुहताज़ कहाँ हैं

दिल के जज़बातों को कहने का अंदाज़ कहाँ है।

-- Birhada 

पास आकर भी निभाया है

दूर रह कर भी निभाया है

कषट दोनों ने झेला है बिरहा का

हमें दुनीआं वालों ने रुलाया है।

शरीर में रह कर ना मिल पाए

तो इससे बाहर निकल कर मिलेंगे

खुदा जाने क्या उसने खेल रचाया है।

दुनीआं मूर्ख है पर मानती है समझदार खुद को

पैसे की खातिर दो आत्माओं को तड़पाया है

  --- अमरीक खाबड़ा 

Re write मिलना चाहो  

अपना समझ कर डांट लो बेशक 

दुःख सुख हमसे बाँट लो बेशक 

साँस लेता हूँ हवा हो तुम 

मुझसे कब बोलो जुदा हो तुम

हसना रोना गले लगाकर 

गले से तुम लगाते क्यों नहीं 

मिलने को मन करता रोज़ 

रहती दिल को तेरी खोज 

बसे हो दिल में धड़कन जैसे 

सामने तुम पर आते क्यों नहीं 

शरतें  रखकर प्यार नहीं होता 

स्कोचने वाला यार नहीं होता 

पूरा रख लो आधा रख लो 

फैसला कोई सुनाते क्यों नहीं 

जाना हो तो जा सकते हो 

कभी भी वापस आ सकते हो 

चाहिए नहीं जो साथ हमारा 

यादों से फिर जाते क्यों नहीं 

तुम में हम में फरक क्या है 

दूर रहने का तरक क्या है 

हमने तुमको अपना माना 

 तुम हमको अपनाते क्यों नहीं


हर ख़ुशी हर गम अब तेरा है सनम 

तेरी यादों से भी काम चला लेंगे हम 

तेरी याद भी न हो तो अँधेरा है सनम। 

छीना छपटी में फूल की अैसी तैसी हुई
हम दोनों का इसमें कसूर ना  कोई

तेरी पूजा में ही ज़िंदगी बिता लेंगे हम  


 --- अमरीक बिरहड़ा 

तेरी रूह को सकूंन  मिले जहाँ हो तुम 

तो मेरी रूह को सकूंन मिले 

समझ लूँगा  दुआ कबूल है मेरी 

मैं  पानी का कतरा हूँ विछड़ा हुआ तुम से 

एक दिन समा जाऊँगा आकर तेरे वजूद में 

मुझे यकीन है मेरे सागर हो तुम 

--- Amrik Khabra


आईना देखा तो महसूस किया हमने

के मासूमियत अभी ज़िंदा है

खड़े तो हम थे आईने के सामने

ना जाने कयों आईने में तुम दिखाई दिए

 --- अमरीक जी... 



धर्म और राजनीती  से ज़रा हटकर 

सांस भी आसान ज़िंदगी के राह भी आसान 

मैं  तो ढूढ़ता रहता हूँ अपने जैसा दोसत 

मिल जाए अगर तो यह भी आसान, और वोह भी आसान 

थोड़ा कम खा लो पर हक सच की खा लो 

दुनीआ में आना भी आसान और दुनीआ से जाना भी आसान 

प्यार तो वोह भी मुझ से करता है मैं भी उस से 

बात नहीं हो पाती , हो जाए उनसे बात अगर 

मैं भी आसान और वोह भी आसान

--- Amrik Khabra 


तेरे बिन जीना सीख लूँ ,अैसा नसीब कहाँ 

आजकल बस दिन गुजारा करता हूँ। 

एक आस लेकर लिए जाता हूँ साँस 

हर पल बस तुम्हे पुकारा करता हूँ। 

सोचता हूँ अब नहीं जाऊँगा घर से बाहर 

चीस जब उठती है, रहा नहीं जाता 

गलती फिर वोही दुवारा करता हूँ। 

 

-- अमरीक बिरहड़ा  


किसी ने तो  जरूर रात भर दुआ की होगी 

के मेरी सांसे आज भी चल रही है 

समुन्दर ना सही दरिआ तो जरूर होगा 

के ज़िंदगी के लहरें अभी उछल रही हैं  

--- अमरीक जी... 


तुझे याद कर फिर रोया हूँ मैं 

कौन कहता है बदल गया हूँ 

बदला नहीं हूँ खोया हूँ मैं 

--- अमरीक खाबड़ा 


जितनी वार टूटा हूँ ज़िन्दगी में

रूह ने और मज़बूती पाई है।

अैसा नहीं के तुम्हे प्यार नहीं करता

बात ना हो पाने की वजह से जुदाई है।

कोशिश करते रहने का नतीजा कुछ ना निकला

अब इसे सज़ा कहूँ जा रिहाई है।

हर पल तुम शामिल हो मेरे वजूद में

ज़माने की नज़र में यह तन्हाई है।

--- Amrik Khabra 


आता है मुझे हर दुःख सुख सहना 

पर मेरे प्यार को नाटक मत कहना। 

आना हो पास तो मर्ज़ी से आना 

दूर रहो तो भी मर्ज़ी से रहना। 

सिर पर चोट मेरे उसी ने मारी थी  

जिसके तुम साथ हो, मुझे है यह कहना।

परंपरा मैं कोई कमाल छोड़ जाऊँगा 

जो हर इंसान को सोचने पर मज़बूर करे 

अैसे सधारण सवाल छोड़ जाऊँगा। 

हर दुःख से लड़ते रहा हूँ अकेला 

जीते धड़कते इंसान की मिसाल छोड़ जाऊँगा। 

दुःख में जीते है चैन से कैसे, नाचते हैं कैसे  

भांगड़ा के  झूमर  धमाल छोड़ जाऊँगा। 

            ---- अमरीक खाबड़ा 

ना अपनी खबर ,ना तेरा पता 

अैसे में अब तू ही बता 

क्या है मेरा गुनाह, क्या मेरी ख़ता।  

फूल खिला तो सुगन्ध मिलेगी 

मैने हमेशा यही था कहा। 

सुगन्ध के पुजारी कम राख के हैं ज्यादा 

उनको राख चाहिए, रहे हैं सता 

Amrik Khabra



“क्या है तेरी मज़बूरी 

वढ़ती जा रही है क्यों  दूरी 

अब तो मैं कुछ सुनता नहीं 

सपने भी तो बुनता  नहीं

शरीर मेरे के सौ ग्राहक 

रूह को कोई चुनता  नहीं "

Amrik Khabra


ना मैं तीनों में, ना तेरों में

ना मैं गीदड़ों में, ना शेरों में।

घड़ी भी नहीं देखता अब मैं

ना सुबह को, ना दुपहरों में।

जो पास आए उसी से करता हूँ बातें

क्या अपनों में क्या गैरों में।

छोटा बन कर जीवन जीओ

क्या रखा है वैरों में।

कुदरत साथ हो जीवन धड़के

कया हिमंत के जीवन रोके

दम कहाँ जहरों में।

पत्ते छनके, चिड़िआ बोले, कानों को आराम मिले

दरिआ बहता बात सुनाए जीवन चलता लहरों में


 ----  अमरीक खाबड़ा 


कौन कहता मुझे प्यार नहीं है

समझो मेरी मज़बूरी को 

खड़े रहते वोह बीस फ़ीट पर,

कैसे कम कर दूँ  दूरी को। 

कभी तो हक से पास आ जाओ

चल के अपनीं मरज़ी से

पाबन्द हूँ  इस लिए नहीं आता

समझो बात अधूरी को। 

खाने को तो खुद ही खा लू

बात  खाने की नहीं बहाने की है 

चूरी तो हो  पर हीर ना  खिलाए

फिर क्या करना चूरी को।

---- अमरीक खाबड़ा   


ज़माने से क्या उम्मीदें रखूँ मैं 

पहले खुद से ही इनसाफ करता हूँ। 

अपने अक्स से करता हूँ आँखें मिला कर बातें, 

मन के शीशे को रोज़ ही साफ़ करता हूँ।

जान बूझ कर किसी का दिल ना  तोडूं 

अनजाने में हुई गलतिओं को माफ़ करता हूँ। 

दरद हो जा ख़ुशी जीता हूँ दोनों शान से 

जो भी है खज़ाना  मेरे पास Half Half  करता हूँ।

Amrik Khabra  


फूलों की हालत देख देख कर 

मन चाहता है पथर हो जाऊं 

परन्तु पथर  होना कोई  हल्ल थोड़े है 

स्थापित कर देंगे देवते की मूरती   बनाकर

पूजा करेंगे कोई बात थोड़ा मानेंगे 

जा फिर टिका देंगे 

किसी भदर पुरष  के रासते में 

इससे अच्छा तो मिट्टी हो जाऊं 

किसे गिरते seed  को सभाल कर सीने में 

फूल जा फलदार पैदा बनने में मदद करूँ 

जा फिर बारिश बन बरस जाऊं 

किसी मुरझाई हुई बनसपती पर 

जा फिर सुगन्ध बन हवा में बिखर जाऊं 

एक प्यारे से एहसास की तरह 

जिसे सभ लोग महसूस कर पाएं  

 -- अमरीक खाबड़ा 



 कितना अच्छा सोच रखा था 

बिलकुल ना  दूरी होगी। 

लोग ना  समझे बात अलग है 

तेरी भी मज़बूरी होगी। 

प्यार की कमी क्या भरे पदारथ

कमी तेरी ना पूरी होगी।  

मेरे वजूद के टुकड़े हो तुम 

ज़िन्दगी  तुम बिन अधूरी होगी। 

---अमरीक खाबड़ा  


 भूल चुक्के उन कुछ शब्दों के अर्थ सिखाने आया हूँ

खुद पर हस कर ,खुद पर रो कर ज़िंदगी समझाने आया हूँ।

राजनीती बिना बचा कया है , खुद से क्यों नहीं पूछते तुम

मैं तो दागी चेहरा लेकर आईना दिखलाने आया हूँ।

चोरी चोरी खाना पीना बहुत आसान है दुनिआ में

ईमानदारी से रहकर प्यासा, असल दिखाने आया हूँ।

कहते क्या हो करते कया हो ,आईने से पूछा करो

चमकते पॉलिश पीछे "सभ्य" कितने अच्छे लगते हैं

सभयता यह नहीं होती यारों अर्थ बताने आया हूँ।

सारे दूध में दूषित जाग का चमचा डाल कर पूछते हो

दही क्यों बना है अैसा यह बतलाने आया हूँ।


---अमरीक खाबड़ा 


कमाल का भरम है उसके  होने का 

जिसके सहारे जीते जा रहा हूँ। 

जहाँ जहाँ बसी है खुसबू उसकी 

दिन रात चकर लगाते जा रहा हूँ। 

पहले छोटा सा दुःख होता था चीख उठता था 

कमाल का नशा है अब उसकी प्रीत का 

दुःख में भी मुस्कुराते जा रहा हूँ। 


---- अमरीक खाबड़ा 


जब वोह आना छोड़ देगा 

हसना गाना छोड़ देगा 

तब समझ में आएगा 

हर वह शक्स पछतायेगा 

जिसने उन को जुदा कीया 

खुद से छोटा खुदा कीया 

अब इसका कोई हल नहीं 

जब तक सीधी गल नहीं 

 ---- अमरीक खाबड़ा 


कितने मौसम बीते तेरी याद में 

राजनीती को पहल प्यार बाद में 

समय कितनी जलदी बीत जाता है कहते हैं वोह  

निकाल कर पूरे चार साल विवाद में। 

चार साल में उन तक पहुंची नहीं 

कमी रही होगी मेरी फरियाद में। 

एक इनसान का दूसरे  लीए जो  प्यार है 

पार्टी में बटकर रहा देश आज़ाद में। 

-- Amrik Khabra


इससे जयादा नज़दीक क्या  जाऊं 

हाल-ए -दिल मैं कैसे बताऊं। 

हम बैठे रहे कि वोह  आएंगे 

हम अपनी गाड़ी में शहर घुमाएंगे।

यह हो ना  सका, कि  वोह दिखा नहीं 

एक समय है जो कभी रुका नहीं। 

गाडी के शीशे की लशकार 

आए  नहीं  वोह गाडी से बाहर। 

हमसे कुछ भी जाना ना  गया 

चेहरा  कोई पहचाना गया।

यह दीवारें बीच में किसने बनाई  

हम रोते  रहे उन्हें सुनी ना दुहाई।

तुम जानो यह वफ़ा जा बेबफाई  

देखो यह दिल की बात है बताई। 

------- बिरहडा  


कितने पूर्णिमा बीते तेरी याद में

मैने बोला चलिए हमारे साथ

वोह बोले अभी नहीं बाद में।

कहते थे वोह हर पल गुज़रेगा प्यार में

कैसे निकली उमर वाद विवाद में।

प्यार को कुरबान हर युग में ही करते हैं

बस एक राजनीती के सवाद में।

एक दिन शरीर परवर्तित हो जाना

मिट्टी जैसी उपजाऊ खाद में।

खैर मिट्टी बनकर भी काम आएंगे

कोई तो फूल खिलेगा समाधि में।

-- Amrik Birhada


ढूढ़ते रहे उमर भर जिनको उनका दीदार ना  हुआ 

चोट दिल पर थी ईलाज दिमाग का करते रहे 

फिर कहने लगे ना जाने कयों  राज़ी बीमार ना  हुआ।

पता तो जरूर होगा उनका कि इनसान बफादार था 

हम ही सोचते रह गए प्यार का इज़हार ना हुआ। 

अब मिलना तुम्हारे बस  में नहीं  महसूस होता है 

कविताएं सारी  तेरे नाम ,मत समझो के प्यार नहीं हुआ। 

जब मिल बैठने का मौका ही कोई नहीं दीया 

फिर क्यों करते हैं इतराज़ के इकरार ना हुआ। 

 ------ अमरीक खाबड़ा 


मेरी जिस अदा से प्यार था उन्हें 

उसी को अब वोह बुरा कहते हैं। 

घूमता रहता हूँ  समय के साथ साथ

इसी लिए मुझे कुदरत का धुरा (axle) कहते हैं। 

जो ज़िन्दगी मिले ना कभी, दूर से पूजते रहो 

उसी को तो लोग खुदा कहते हैं। 

हर माप दण्ड ठीक नहीं दुनिआ का 

साथ होते हुए भी ignore करे साथी कहते हैं उसको 

जो दूर रह कर भी साथ दे उसे जुदा कहते हैं। 

-- अमरीक बिरहड़ा 


अगर तुम आज़ाद होते 

हम दोनों आबाद होते। 

साथ बैठ तुम बात तो करते 

बाकी  काम बाद होते। 

बातचीत को तोड़ दीया 

शहर मेरा छोड़ दीया। 

बीच के फालतू लोगों ने

रिश्ता तोड़ मरोड़ दीया। 

एक जैसे अपराधी हैं 

सरकारी और गैर सरकारी।  

जो करते हैं पैसे  के लीए 

इनके संग फिर कैसी यारी । 

 ---- अमरीक खाबड़ा 


जीते हैं अब भी एक दूसरे की यादों में 

सभको नहीं नसीब होता,

यह एहसास कोई कम तो नहीं। 

इस जिस्म में प्रतिबिंबित तुम, 

हमको लगता यह हम तो नहीं। 

दिल इकमिक पर जिस्म जुदा  

उदासी जरूर है,  गम तो नहीं। 

हाँ थोड़ा आँखों की चमक कम हुई 

रो चुके अब आँखें उतनी नम तो नहीं। 

मिलते हैं रोज़ नए लोगों से ज़िन्दगी चलती रहती है 

पर वोह सभ तो अज़नबी हैं , कोई हमारा हमदम तो नहीं। 

--  Amrik Birhada 


नदी भी हूँ , प्यास भी हूँ 

निराशा भी हूँ ,आस भी हूँ 

खुश भी हूँ , उदास भी हूँ 

जनाब यह सभ कुछ मिला के 

ही तो इंनसान बनता है 

--- Amrik Khabra


आओ मिलकर एक शहर वसाते हैं 

नाम रखेंगे मुहबत कैंट 

साफ़ और सीधी बातें करेंगे 

बात में ना होगा कोई भी Dent 

इनसान बनकर रहेंगे सभी 

ना  कोई  Lady  ना कोई Gent 

मिलकर उगाएंगे फसल खुद ही 

ना कोई किश्तें हों न कोई Rent  

- Amrik Khabra